DETAILED NOTES ON प्राचीन भारत का इतिहास

Detailed Notes on प्राचीन भारत का इतिहास

Detailed Notes on प्राचीन भारत का इतिहास

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शाहजहाँ के काल का पहला सरकारी इतिहास मोहम्मद अमीन कजवीनी द्वारा रचित पादशाहनामा है (इस नाम से अब्दुल हमीद लाहौरी ने भी शाहजहाँ कालीन इतिहास लिखा)।

बरनी ने इस ग्रंथ में खिलजी तथा तुगलक वंश का आंखों देखा वर्णन लिखा है। इस ग्रंथ के बारे में उसने लिखा है, ‘‘यह एक ठोस रचना है, जिसमें अनेक गुण सम्मिलित हैं। जो इसे इतिहास समझकर पढ़ेगा, उसे राजाओं और के अलावा सामाजिक, आर्थिक एवं न्यायिक सुधारों का भी वर्णन किया है। इसमें कवियों, दार्शनिकों तथा संतों की लम्बी सूची दी गयी है। बरनी ने जलालुद्दीन तथा अलाउद्दीन के पतन के कारणों का भी वर्णन किया है। लोकप्रसाशन बरनी इतिहास की विकृत करने के विरूद्ध था। डॉ॰ ईश्वरीप्रसाद के अनुसार, ‘‘मध्यकालीन इतिहासकारों में बरनी ही अकेला ऐसा व्यक्ति है, जो सत्य पर जोर देता है और चाटुकारिता तथा मिथ्या वर्णन से घृणा करता है।’’ इसके बाद भी इस ग्रंथ में तिथि सम्बन्धी दोष तथा धार्मिक पक्षपात देखने को मिलता है, किन्तु यह अमूल्य ऐतिहासिक कृति है। यू.

पूर्वी गंगवंश – पूर्वी गंगवंश भारतीय उपमहाद्वीप का एक हिन्दू राजवंश था। उन्होने कलिंग को राजधानी बनाया। उनके राज्य के अन्तर्गत वर्तमान समय का सम्पूर्ण उड़ीसा तो था ही, इसके साथ ही पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के भी कुछ भाग थे।इनका शासन ११वीं शताब्दी से १५वीं शताब्दी तक रहा। उनकी राजधानी का नाम 'कलिंगनगर' था जो वर्तमान समय में आन्ध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिला का श्रीमुखलिंगम है। पहले यह उड़ीसा के गंजम जिले में था। पूर्वी गंगवंश के शासक कोणार्क के सूर्य मन्दिर के निर्माण के लिये प्रसिद्ध हैं।

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पाषाण युग इतिहास का वह काल है जब मानव का जीवन पत्थरों पर अत्यधिक आश्रित था। उदाहरनार्थ पत्थरों से शिकार करना, पत्थरों की गुफाओं में शरण लेना, पत्थरों से आग पैदा करना इत्यादि। इसके तीन चरण माने जाते हैं, पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल एवं नवपाषाण काल जो मानव इतिहास के आरम्भ से लेकर काँस्य युग तक फ़ैला हुआ है।

पुरातात्विक स्त्रोत का सम्बन्ध प्राचीन अभिलेखों, सिक्कों, स्मारकों, भवनों, मूर्तियों तथा चित्रकला से है, यह साधन काफी विश्वसनीय हैं। इन स्त्रोतों की सहायता से प्राचीन काल की विभिन्न मानवीय गतिविधियों की काफी सटीक जानकारी मिलती है। इन स्त्रोतों से किसी समय विशेष में मौजूद लोगों के रहन-सहन, कला, जीवन शैली व अर्थव्यवस्था इत्यादि का ज्ञान होता है। इनमे से अधिकतर स्त्रोतों का वैज्ञानिक सत्यापन किया जा सकता है। इस प्रकार के प्राचीन स्त्रोतों का अध्ययन करने वाले अन्वेषकों को पुरातत्वविद कहा जाता है।

बाह्य लिंक्सबद्दल आम्हाल काय वाटतं? इथे वाचा. बाह्य लिंक्सबद्दल आम्हाल काय वाटतं? इथे वाचा.

यह अभिलेख आमतौर पर ठोस सतह वाले स्थानों अथवा वस्तुओं पर मिलते हैं, लम्बे समय तक अमिट्य बनाने के लिए इन्हें ठोस सतहों पर लिखा जाता है। इस प्रकार के अभिलेख मंदिर की दीवारों, स्तंभों, स्तूपों, मुहरों तथा ताम्रपत्रों इत्यादि पर प्राप्त होते हैं। यह अभिलेख अलग-अलग भाषाओँ में लिखे गए हैं, इनमे से प्रमुख भाषाएँ संस्कृत, पाली और संस्कृत हैं, दक्षिण भारत की भी कई भाषाओँ में काफी अभिलेख प्राप्त हुए हैं।

दिल्ली की सल्तनत पर पांच वंशों ने शासन किया-

ब्रह्मवैवर्त पुराण में पुराणों के पाँच लक्षण बताये गये हैं- सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। सर्ग बीज या आदिसृष्टि है, प्रतिसर्ग प्रलय के बाद की पुनर्सृष्टि को कहते हैं, वंश में देवताओं या ऋषियों के वंश-वृक्षों का वर्णन है, मन्वन्तर में कल्प के महायुगों का वर्णन है। वंशानुचरित पुराणों के वे अंग हैं जिनमें राजवंशों की तालिकाएँ दी गई हैं और राजनीतिक अवस्थाओं, कथाओं और घटनाओं का वर्णन है। किंतु वंशानुचरित केवल भविष्य, मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्रह्मांड तथा भागवत पुराणों में ही प्राप्त होता है। गरुड़-पुराण में पौरव, इक्ष्वाकु और बार्हद्रथ राजवंशों की तालिका मिलती है, किंतु इनकी तिथि अनिश्चित है।

त्यासाठी पायऱ्या आहेत. पायऱ्यांच्या दुतर्फा पूजेच्या साहित्याची दुकानं आहेत.

फ़ारस पर अरबी तथा तुर्कों के विजय के बाद ११वीं सदी में इन शासकों का ध्यान भारत की ओर गया। इसके पहले छिटपुट रूप से कुछ मुस्लिम शासक उत्तर भारत के कुछ इलाकों को जीत या राज कर चुके थे पर इनका प्रभुत्व तथा शासनकाल अधिक नहीं रहा था। हालाँकि अरब सागर के मार्ग से अरब के लोग दक्षिण भारत के कई इलाकों खासकर केरल से अपना व्यापार संबंध इससे कई सदी पहले से बनाए हुए थे, पर इससे भी इन दोनों प्रदेशों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान बहुत कम ही हुआ था। दिल्ली सल्तनत[संपादित करें]

भारत पर आक्रमण के समय सिकंदर के साथ आनेवाले लेखकों ने भारत के संबंध में अनेक ग्रंथों की रचना की। इनमें नियार्कस, आनेसिक्रिटस, अरिस्टोबुलस, निआर्कस, चारस, यूमेनीस आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। इन लेखकों ने तत्कालीन भारतीय इतिहास का अपेक्षाकृत प्रमाणिक विवरण दिया है।

माना जाता है कि प्राकृतिक आपदाओं के आने के कारण सिंधु घाटी की सभ्यता भी नष्ट हो गई थी।

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